Tulsidas Ka Janm Kab Hua Tha : दोस्तों! गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे में आप में से कई लोग जानते होंगे। तुलसीदास जी एक महान भारतीय कवि, सन्त और दार्शनिक थे। श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का जन्म कब हुआ था? इस विषय में आज के इस लेख में सारी जानकारी दी गई है और इसके साथ ही तुलसीदास जी का जीवन परिचय ( Tulsidas Jivan Parichay), रचनाएँ आदि के बारे में भी विस्तार से बताया गया है इसलिए आप इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ियेगा ।
तुलसीदास : संक्षिप्त जीवन परिचय ( Tulsidas ka jivan parichay in hindi)
Goswami Tulsidas |
तुलसीदास का जन्म कब हुआ था? ( Tulsidas ka Janm Kab Hua Tha )
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 11 अगस्त, 1511 ई० को उत्तर प्रदेश राज्य के कासगंज जिले में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ विद्वानों का मानना है कि तुलसी चरित के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म राजापुर नामक स्थान पर हुआ था जो कि उत्तर प्रदेश के बांदा जिले का एक गांव है। इनके पिता का नाम पंडित आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में 12 महीने तक थे जब इनका जन्म हुआ तो इनका शरीर बड़ा और गठीला था। जन्म के समय तुलसीदास के मुँह से राम शब्द निकल रहा था जिस कारण इनका नाम रामबोला पड़ा ।
कहा जाता है कि तुलसीदास जी के माता-पिता ने बचपन में ही इनका त्याग कर दिया था जिसकी वजह से इनका पालन पोषण प्रसिद्ध संत बाबा नरहरिदास ने किया इन्होंने ही तुलसीदास को ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की।
तुलसीदास जी के जन्म के समय और जन्म स्थान दोनों के विषय में विद्वानों में मतभेद रहे हैं इसके बारे में पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईस्वी में हुआ था जबकि कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि तुलसीदास जी का जन्म 1497 ई में हुआ था वहीं पर कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका जन्म 1511 ईस्वी में हुआ था। जन्म स्थान के संबंध में बात करें तो कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले का राजापुर गांव मानते हैं जबकि कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का शूकरक्षेत्र नामक स्थान को मानते हैं।
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तुलसीदास का परिवार ( Family )
उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में शूकरक्षेत्र नाम का एक स्थान है जहां पर पंडित सच्चिदानंद शुक्ल नामक एक ब्राह्मण रहते थे इनके दो पुत्र थे जिनका नाम पंडित आत्माराम और पंडित जीवाराम था पंडित आत्माराम और हुलसी के पुत्र तुलसीदास थे जबकि पंडित जीवाराम के दो पुत्र नंददास और चंद्हास थे। तुलसीदास जी का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली के साथ हुआ था। इनका एक पुत्र भी था जिसका नाम तारक था लेकिन उसकी बचपन में ही मृत्यु हो गई थी।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा ( Early Life and Education)
तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था जन्म के समय तुलसीदास का शरीर बड़ा और गठीला था जिसके भय से उनके माता-पिता ने इनका त्याग कर दिया। इसके बाद तुलसीदास जी का पालन पोषण प्रसिद्ध संत बाबा नरहरिदास ने किया, उन्होंने तुलसीदास जी को ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद तुलसीदास जी चित्रकूट चले गए और लोगों को राम कथा और महाभारत की कथा सुनाने लगे ।
तुलसीदास का जीवन परिचय ( Biography)
- तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई को उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के सोरों शूकरक्षेत्र नामक स्थान पर हुआ था।
- तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था ।
- बचपन में इनका नाम रामबोला था।
- कहां जाता है की बचपन में उनके माता-पिता ने इनका त्याग कर दिया था।
- इनका पालन पोषण एक संत नरहरिदास ने किया था जिन्होंने तुलसीदास जी को ज्ञान और भक्ति की शिक्षा दी थी।
- तुलसीदास का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली के साथ हुआ था।
- तुलसीदास के तारक नाम का एक पुत्र भी था जिसकी मृत्यु हो गयी थी ।
- तुलसीदास जी का अधिकांश समय वाराणसी में व्यतीत हुआ।
- वाराणसी के गंगा घाट पर बने तुलसी घाट का नाम तुलसीदास के नाम पर ही रखा गया है ।
- तुलसीदास जी की मृत्यु भी वाराणसी के अस्सी घाट पर हुई थी।
- वाराणसी के प्रसिद्ध हनुमान जी के संकट मोचन मंदिर का निर्माण भी तुलसीदास जी द्वारा किया गया था।
- हनुमान जी के बाद श्री राम की सबसे बड़े भक्त तुलसीदास जी थे यही कारण है कि तुलसीदास जी कलयुग के केवल ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें श्री राम, लक्ष्मण और हनुमान जी के दर्शन हुए थे।
- तुलसीदास जी ने महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण का अवधी भाषा में अनुवाद किया जिसे श्री रामचरितमानस के नाम से जाना जाता है।
- तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है।
- तुलसीदास जी की मृत्यु 1623 ई को वाराणसी के अस्सी घाट पर हुई थी ।
- श्री रामचरितमानस की अतिरिक्त गोस्वामी तुलसीदास जी ने विनय पत्रिका, गीतावली, कवितावली, दोहावली जानकी मंगल, पार्वती मंगल आदि रचनाएं लिखी हैं ।
- हनुमान चालीसा को भी गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया है ।
रचनाएँ ( Tulsidas ki Rachnae)
गोस्वामी तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है इन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को अवधी भाषा में लिखा है जिसे रामचरितमानस कहा जाता है उत्तर भारत में इस काव्य ग्रंथ को बड़े ही भक्ति भाव से पढ़ा जाता है श्रीरामचरितमानस के अतिरिक्त तुलसीदास जी के कुछ प्रमुख रचनाएं नीचे दी गई हैं-
विनय - पत्रिका, कवितावली, गीतावली, श्रीकृष्ण गीतावली, दोहावली, जानकी - मंगल, पार्वती - मंगल, हनुमान चालीसा, वैराग्य संदीपनी, बरवै-रामायण आदि।
तुलसीदास जी का साहित्यिक परिचय
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी मात्र एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं बल्कि महान लोकनायक और तत्कालीन समाज के दिशा निर्देशक भी थे। इनके द्वारा लिखा गया महाकाव्य 'श्री रामचरितमानस' भाषा, भाव, उद्देश्य, कथावस्तु, चरित्र चित्रण तथा संवाद की दृष्टि से हिंदी साहित्य का एक अद्भुत ग्रंथ है।
दुनिया के सबसे प्रसिद्ध ग्रंथों में श्री रामचरितमानस एक है इस ग्रंथ में तुलसीदास के कवि, भक्त एवं लोकनायक रूप का चरम उत्कर्ष दिखाई देता है। श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी ने व्यक्ति, परिवार, समाज, राज्य, राजा, प्रशासन, मित्रता, दांपत्य एवं भ्रातृत्व गुण का जो आदर्श प्रस्तुत किया है वह संपूर्ण विश्व के मानव समाज का पथ प्रदर्शक रहा है।
तुलसीदास एक विलक्षण प्रतिभा से संपन्न तथा लोकगीत एवं समन्वय भाव से युक्त महाकवि थे भाव चित्रण, चरित्र चित्रण की दृष्टि से उनकी काव्यात्मक प्रतिभा का उदाहरण संपूर्ण विश्व साहित्य में भी मिलना दुर्लभ है।
महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी ने तुलसीदास के लिए लिखा है कि
कविता करके तुलसी ना लसे
कविता लसी पा तुलसी की कला।
अर्थात तुलसीदास की कला का स्पर्श प्राप्त करके स्वयं कविता ही सुशोभित हो गई।
तुलसीदास जी की भाषा
तुलसीदास जी ने ब्रज एवं अवधी दोनों ही भाषाओं में अपनी रचनाएँ की है उनका महाकाव्य श्री रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा गया है विनय पत्रिका, गीतावली और कवितावली में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है इनके रचनाओं में मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा के प्रभाव में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
तुलसीदास जी की शैली
तुलसीदास जी की काव्य शैली की बात करें तो इन्होंने अपने समय में प्रचलित सभी काव्य शैलियों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है श्री रामचरितमानस में प्रबंध शैली , विनय पत्रिका में मुक्तक शैली तथा दोहावली में कबीर के समान प्रयुक्त की गई साखी शैली का प्रयोग तुलसीदास जी ने किया है इसके साथ ही इन्होंने अन्य शैलियों का भी प्रयोग किया है।
निष्कर्ष
महाकवि तुलसीदास जी भगवान श्री राम के बहुत बड़े भक्त थे ऐसा कहा जाता है कि कलयुग में केवल तुलसीदास ही ऐसे व्यक्ति थे जिनकी मुलाकात भगवान राम और हनुमान जी से हुई थी इस लेख में हमने तुलसीदास के जीवन परिचय (Tulsidas Biography in Hindi), साहित्यिक परिचय, रचनाओं, भाषा शैली आदि के विषय में विस्तार से बताया है।
हमें आशा है कि इस लेख के माध्यम से आपको तुलसीदास जी के जीवन के विषय में काफी जानकारियां मिल गई होगी ऐसे ही ज्ञानवर्धक लेख पढ़ने के लिए आप हमारे व्हाट्सएप चैनल या टेलीग्राम ग्रुप से जुड़ सकते हैं।
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